
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने श्री स्वामीनारायण गुरुकुल राजकोट संस्थान का 75वां अमृत महोत्सव में सहभाग
परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने श्री स्वामीनारायण गुरुकुल राजकोट संस्थान का 75वां अमृत महोत्सव में सहभाग कर परम आदरणीय पूज्य देवकृष्ण प्रसाद स्वामी जी, गुरू महाराज, महन्त स्वामी जी, धर्मस्वामी जी को याद करते हुये प्रदेश प्रमुख सीआर पाटिल जी को रूद्राक्ष का पौधा भेंट किया।
इस अवसर पर श्री देवकृष्ण दास जी स्वामी, महंत स्वामी जी, धर्मवल्लभ दास जी स्वामी, भाजपा प्रदेश प्रमुख सीआर पाटील जी, गुजरात राज्य के गृहमंत्री श्री हर्ष संघवी जी, शिक्षा मंत्री प्रफुल्ल पनसेरिया जी, मंत्री श्री मुकेश पटेल जी, श्री ढ़ोलकिया जी, श्री भरत घोघरा जी, डायमंड मर्चेंट लाल जी भाई पटेल, धीरू भाई जी, परेश भाई जी और अन्य विशिष्ट गण उपस्थित थे।
माननीय प्रधानमंत्री भारत, श्री नरेन्द्र मोदी जी वर्चुअल रूप से जुड़कर सभी को सम्बोधित करते हुये कहा कि गुरूकुलों ने देश की मेधा को पोषित किया है, यह गुरूकुल एक ऐसा संस्थान है जो एक दिन का केवल एक रूपये लेता है। भारत में ज्ञान ही जीवन का सर्वोच्च उद्देश्य रहा है। भारत को और भारत भूमि को गुरूकुल के नाम से जाना जाता है। गुरूकुल सदियों से समता, ममता और सेवाभाव की वाटिका के रूप में रहा है। नालंदा और तक्षशिला जैसे विश्वविद्यालय भारत की इस गुरूकुल परम्परा के वैश्विक वैभव के पर्याय हुआ करते थे। खोज और सोच भारत की जीवन पद्धति का हिस्सा है। हम भारत के कण-कण में जो विविधता और सांस्कृतिक समृद्धि देखते है वह शोधों और अन्वेंशनों का परिणाम है। हमने शुन्य से अनन्त तक हर क्षेत्र में शोध किया। भारत ने मानवता के प्रकाश की किरणे सभी को प्रदान की। जिस कालखंड में विश्व में जेंडर इक्विेलिटी जैसे शब्दों का जन्म भी नहीं हुआ था तब हमारे यहां गार्गी और मैत्रेयी जैसी विदुषियां शास्त्रार्थ करती थी। महर्षि वाल्मिकी जी के आश्रम में लवकुश के साथ ही आत्रेयी भी पढ़ रही थी। भारत के उज्वल भविष्य में आज की शिक्षण व्यवस्था की बहुत बड़ी भूमिका है।
परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वमी जी ने कहा कि मुझे याद है पूज्य धर्म जीवनदास जी महाराज जब ऋषिकेश गंगा किनारे ध्यान, साधना, तपस्या करने आते थे, तब ऐसा लगता था जैसे मां गंगा के तट पर गुजरात आ गया हो। उनका पवित्र जीवन, साधु जीवन है परन्तु वे जो सबसे बड़ा काम कर रहे है जिसकी आज देश और सम्पूर्ण विश्व को जरूरत है वह है ‘शिक्षण’।
स्वामी जी ने कहा कि शिक्षा संस्था वह भी अमृत महोत्सव के अवसर पर गुरूकुल ने भी 75 वर्ष पूर्ण किये हैं। यह भी आश्चर्य की बात है कि अपने देश में 52 शक्तिपीठ हैं और गुरूकुल के पास 52 शिक्षापीठ है।
उन्होंने कहा कि जीवन को आनन्द के साथ जीने के लिये केवल शिक्षा की ही नहीं बल्कि संस्कारों की भी जरूरत है। स्वामी धर्मजीवन दास महाराज जी का जीवन धर्ममय जीवन था, सरल सहज और सबके लिये जीवन था, समता, सदभाव और समरसता युक्त जीवन था। उन्होंने कभी सामान की नहीं बल्कि सम्मान की बात की। किस के पास कितना है उस पर ध्यान नहीं दिया परन्तु गुरूकुल उसे कितना दे सकता है इस पर विशेष ध्यान दिया।
स्वामी जी ने कहा कि ंहम धनवान बनें परन्तु धर्मवान भी बनंे। कभी कभी जीवन में धन तो आ जाता है लेकिन जरूरी नहीं है वह धन आपको शान्ति प्रदान करें। जीवन का उद्देश्य बड़े-बड़े मकान खड़े करना नहीं है बल्कि जीवन को बढ़िया बनाना है। जब जीवन बढ़िया बनता है तब जीवन बदल जाता है, धन्य हो जाता है। धन से आप इन्फ्रास्ट्रचर तो खड़े कर सकते हैं परन्तु धर्म से आप इन्ट्रास्ट्रचर खड़ा कर सकते है, भीतर बदल जाता है, दिल बदल जाता है। गुरूकुल, जीवन की दिशा बदल देते हैं।
गुरूकुल के संस्कार जीवन को बदल देेते हैं। कर्म करने का तरीका बदलता हंै; पूरा जीवन बदल जाता है। स्वामी जी ने कैरियर ओरिएंटेंड बनाने के साथ कर्म ओरिएंटेंड बनने का संदेश दिया। जीवन में सफाई, सच्चाई और ऊँचाई लाने का संदेश दिया।
ज्ञात हो कि राजकोट गुरुकुल अपनी 75 वर्षों की यात्रा का जश्न मना रहा हैं। उल्लेख मिलते हैं कि वर्ष 1948 में, शास्त्रीजी महाराज श्री धर्मजीवनदासजी स्वामी जी ने स्वतंत्रता के बाद भारत में पहला गुरुकुल इस विचार से शुरू किया था कि ‘भारत को स्वतंत्रता की जितनी आवश्यकता है, उसी तरह स्वतंत्र भारत को एक महान और अच्छे नागरिकों की आवश्यकता है। यह गुरूकुल 7 छात्रों के साथ शुरू किया था तब से 75 वर्ष बीत चुके हैं और आज विश्व भर में 50 से अधिक शाखाओं में 50000 से अधिक छात्र संस्कारों के साथ शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। इस संस्था ने तीन प्रमुख पहलुओं के आधार पर गुरुकुल शुरू किया था- विद्या (आधुनिक शिक्षा), सदविद्या (पारंपरिक शिक्षा), ब्रह्मविद्या (आध्यात्मिक शिक्षा)।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने राजकोट गुरुकुल अपनी 75 वर्षों की यात्रा की याद में उस प्रांगण में रूद्राक्ष का पौधा रोपित करने हेतु पूज्य संतों को भेंट किया। माननीय प्रधानमंत्री जी के उद्बोधन से पूर्व सभी ने खडे़ होकर ध्वज लहराकर उनका सम्मान किया।