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H.H. Pujya Swami Chidanand Saraswatiji | | Pujya Swamiji Graces Release of Commemorative Postage Stamp on 200th Birth Anniversary of Pujya Swami Dayanand Saraswatiji by Hon’ble Vice President of India
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Pujya Swamiji Graces Release of Commemorative Postage Stamp on 200th Birth Anniversary of Pujya Swami Dayanand Saraswatiji by Hon’ble Vice President of India

Apr 07 2023

Pujya Swamiji Graces Release of Commemorative Postage Stamp on 200th Birth Anniversary of Pujya Swami Dayanand Saraswatiji by Hon’ble Vice President of India

विज्ञान भवन दिल्ल्ी में स्वामी दयानंद सरस्वती जी की 200वीं जयंती पर स्मारक डाक टिकट जारी किया गया। इस पावन अवसर पर भारत के माननीय उपराष्ट्रपति श्री जगदीप धनखड़ जी, माननीय उपराष्ट्रपति की पत्नी डॉ. (श्रीमती) सुदेश धनखड़ जी, पतंजलि योगपीठ से योगगुरू स्वामी रामदेव जी, परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी, सांसद सीकर राजस्थान, स्वामी सुमेधानन्द सरस्वती जी, माननीय संचार राज्य मंत्री, भारत सरकार, श्री देवुसिंह चैहान जी, सांसद डॉ सत्य पाल सिंह जी और अन्य विशिष्ट अतिथियों की पावन उपस्थिति में भारत के माननीय उपराष्ट्रपति द्वारा स्वामी दयानंद सरस्वती की 200वीं जयंती पर स्मारक डाक टिकट का विमोचन किया।

इस पावन अवसर पर स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने पूज्य स्वामी दयानन्द सरस्वती जी को श्रद्धाजंलि अर्पित करते हुये कहा कि महर्षि दयानन्द सरस्वती जी ने समाज के नवनिर्माण हेतु महत्वपूर्ण योगदान दिया। एक भारतीय दार्शनिक, सामाजिक नेता और आर्य समाज के संस्थापक थे। वे एक स्व-प्रबोधित व्यक्तित्व और भारत के महान नेता थे जिन्होंने भारतीय समाज पर व्यापक प्रभाव छोड़ा।

महर्षि स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के अखंड भारत के दृष्टिकोण में वर्गहीन और जातिविहीन समाज की उत्कृष्ट रचना थी। उन्होंने वेदों से प्रेरणा ली और उन्हें ‘भारत के युग की चट्टान’, ‘हिंदू धर्म का अचूक और सच्चा मूल बीज’ माना इसलिये उन्होंने वेदों की ओर लौटो’ का नारा दिया।

स्वामी दयानंद सरस्वती जी को पुनर्जागरण युग का हिंदू मार्टिन लूथर कहा जाता है। उन्होंने संदेश दिया कि वेदों की और लौटो और भारत की प्रभुता को समझो। उन्होंने समाज को अभिनव राष्ट्रवाद और धर्म सुधार के लिये तैयार किया।

स्वामी दयानंद जी का मानना था कि आर्य समाज के कर्तव्य धार्मिक परिधि से कहीं अधिक व्यापक हैं। उन्होंने कहा कि व्यक्ति के जीवन का उद्देश्य लोगों के शारीरिक, सामाजिक और आध्यात्मिक कल्याण के लिये कार्य करना होना चाहिये। उन्होंने व्यक्तिगत उत्थान के स्थान पर सामूहिक उत्थान को अधिक महत्त्व दिया। स्वामी दयानंद सरस्वती जी का योगदान एक विचारक और सुधारक दोनों ही रूपों में सहज प्रेरणा का स्रोत है।

आर्य समाज का उद्देश्य वेदों को सत्य के रूप में फिर से स्थापित करना है। आर्य समाज द्वारा महिला शिक्षा के उत्थान के साथ ही अंतर्जातीय विवाह को बढ़ावा देने की दिशा में कार्य किया गया। ऐसे पूज्य संत को हम 200 वीं जन्म जयंती पर स्मारक डाक टिकट का विमोचन कर भावभीनी श्रद्धाजंलि अर्पित करते है।

आज के इस दिव्य कार्यक्रम की शुरूआत वेदमंत्रों के गायन और समापन राष्ट्रगान के साथ हुआ। डॉ सत्य पाल सिंह जी ने सभी विशिष्ट अतिथियों को शाल, श्रीफल और गुलदस्ता भेंट कर सभी का स्वागत व अभिनन्दन किया।

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