
Pujya Swamiji Graces 2550th Lord Mahavir Nirvana Mahamotsav in Delhi
परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने भगवान महावीर स्वामी जी की 2622 वीं जन्म जयंती समारोह के पावन अवसर पर 2550 वां भगवान महावीर निर्वाण महामहोत्सव मेें सहभाग किया।
विज्ञान भवन, नई दिल्ली में आयोजित यह दिव्य महामहोत्सव परम्पराचार्य प्रज्ञसागर मुनि जी के मार्गदर्शन एवं प्रेरणा से परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी, आर्ट आॅफ लिविंग के संस्थापक श्री श्री रविशंकर जी, केंद्रीय जल शक्ति मंत्री, भारत सरकार, श्री गजेन्द्र सिंह शेखावत जी, सड़क परिवहन एवं राजमार्ग तथा नागरिक उड्डयन राज्य मंत्री, भारत सरकार, सांसद एवं पूर्व सेनाध्यक्ष श्री वीके सिंह जी, उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण और पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन राज्य मंत्री, श्री अश्विनी चैबे जी, पर्यटन राज्य मंत्री, भारत सरकार, श्री श्रीपद् नायक जी, गुरूकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय के कुलाधिपति, सांसद श्री सत्यपाल सिंह जी, भारतीय जनता पार्टी के पूर्व राष्ट्रीय उपाध्यक्ष श्री श्याम जाजू जी, दिल्ली भाजपा के पूर्व अध्यक्ष, एनडीएमसी उपाध्यक्ष श्री सतीश उपाध्याय जी, भाजपा दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष श्री वीरेन्द्र सचदेवा जी, सांसद राज्यसभा श्री सत्यनारायण जटि़या जी, पंचायती राज मंत्रालय, केंद्रीय राज्य मंत्री कपिल मोरेश्वर पाटिल जी, श्री कपिल जैन जी, श्री श्याम सिंह यादव जी, पूज्य जैन मुनियों, विशिष्ट गणमान्य अतिथियों के पावन सान्निध्य में आयोजित हुआ।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने भगवान महावीर स्वामी जी को नमन करते हुये कहा कि जीवन में पवित्रता, सरलता, सात्विकता और संयम जरूरी है। ये मनुष्य मात्र के धर्म माने जाते हैं। धर्म रूपी व्यवस्था के पालन से व्यक्ति एवं समाज दोनों की उन्नति साथ-साथ होती है एवं किसी का अहित भी नहीं होता। यह सत्य है कि सामाजिक सुरक्षा एवं सुव्यवस्था में जितना स्थान पुलिस और प्रशासन का होता है उससे कहीं ज्यादा योगदान धर्म के मूलभूत तत्त्वों एवं सिद्धांतों का होता है। धृति, क्षमा, दया इन सब के पालन से जीवन में शान्ति आती है। धृति से शान्ति प्राप्त होती है। हम क्षमा के माध्यम से भी शान्ति को प्राप्त कर सकते हैं इसलिये क्षमा को बहुत महत्व प्रदान किया है। जीवन मे ंहम क्षमा का मंत्र अपना लें तो जीवन बहुत ही सरल, सहज और सरस बन जायेगा।
स्वामी जी ने कहा कि ‘फॅरगिव, फॅरगेट एंड मूव फाॅरवर्ड’ ये जीवन के महसमंत्र है। जीवन के लिये बड़ा प्यारा मंत्र है-क्या लेकर आये थे और क्या लेकर जाना है, जो है, सब यही से लिया और यही रह जाता है।
स्वामी जी ने कहा कि क्षमा इसलिये नहीं की यह दूसरों पर उपकार है बल्कि इसलिये कि यह स्वयं पर ही उपकार है। क्षमा को अंतरात्मा का सर्वोत्तम गुण कहा गया है।
जीवन में दया, करूणा, प्रेम, समानुभूति और संवेदना के प्रादुर्भाव के बाद क्षमा का समावेश होता है। सहानुभूति से भी एक कदम आगे है क्षमा, जिसमें दूसरों द्वारा तकलीफ एवं दुख पहुंचाने पर भी क्षमा का भाव आ गया मानो वह तर गया।
स्वामी जी ने कहा कि सारे विवाद, क्षमा पर आकर समाप्त हो जाते हैं, इससे संसार रूपी भवसागर से तरने में आसानी हो जाती है। मानवीय मूल्य, सत्य, अहिंसा, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह, क्षमा, दया, संयम, दान आदि से युक्त जीवन ही धार्मिक जीवन है इसलिये हम अपने मूल एवं मूल्यों से जुड़े रहें, अपनी जड़ों से जुड़े रहेें और यही शिक्षा भगवान महावीर स्वामी जी ने हमें प्रदान की है।
प्रकृति का यह शाश्वत नियम है कि जैसी नीति होगी वैसी प्रगति होगी। हमारी नीति और नियति क्षमा से युक्त हो। जिस प्रकार नमक का धर्म खारापन, पानी का धर्म तरलता और शीतलता है, अग्नि का धर्म ऊष्मा एवं प्रकाश है तथा पृथ्वी का धर्म दृढ़ता है वैसे ही मानव का धर्म मानवता और क्षमा करना है आज इस पावन अवसर पर इसे धारण करने का संकल्प लें।
स्वामी जी ने कहा कि किसी को क्षमा करने के लिये सम्यक दर्शन, सम्यक ज्ञान और सम्यक चरित्र आवश्यक है। जीवन में सहिष्णुता, सहनशीलता, धैर्य जरूरी है, यह गंुण विपरीत परिस्थितियों के बीच भी मुस्कराना सिखा देते है, अपने क्रोध और विरोध पर काबू पाकर सहिष्णु व्यक्ति विरोधी विचारों पर बिना प्रतिक्रिया दिये दूसरों को क्षमा कर सकता है। क्षमा ऐसी तलवार है जो बिना घाव दिये ही सारे घाव मिटा देती है।
स्वामी जी ने कहा कि महाभारत ‘अनुशासन पर्व’ में अहिंसा परमो धर्मः अर्थात अहिंसा सर्वोच्च नैतिक गुण है का उल्लेख किया गया है। अहिंसा योग शास्त्र के पाँच यमों में से एक है। गोस्वामी तुलसीदास जी ने भी ‘मानस’ के उत्तरकाण्ड में “परम धर्मश्रुति विदित अहिंसा” की उत्कृष्ट व्याख्या की है। भगवान महावीर स्वामी जी तो अहिंसा की मशाल के वाहक है और इसे पंच महाव्रतों में स्थान दिया है।
भगवान महावीर स्वामी जी ने हमें अहिंसा, सत्य, अस्तेय (चोरी न करना), ब्रह्मचर्य (शुद्धता) तथा अपरिग्रह (अनासक्ति) का पालन करने की शिक्षा दी और उनकी शिक्षाओं को ‘जैन आगम’ कहा गया।
भगवान महावीर ने कहा था कि प्रत्येक मनुष्य को अपने जीवन से हिंसा का त्याग करना चाहिये। प्रत्येक मनुष्य को सत्य के पथ का अनुसरण करना चाहिये तथा किसी भी परिस्थिति में झूठ बोलने से बचना चाहिये। हमें आवश्यकता से अधिक वस्तुओं का संग्रह करने से बचना चाहिये। हमें अपने जीवन में अस्तेय का पालन करने वाले प्रत्येक कार्य को सदैव संयम से करते रहना चाहिये आईये इन शिक्षाओं केा जीवन में आत्मसात करें यही सच्ची श्रद्धाजंलि है और यही होगा सच्चा समर्पण, जो स्वयं के जीवन को और समाज को भी आध्यात्मिक उन्नति के शिखर पर ले जा सकेगा।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने पूज्य तपस्वी मुनियों, संतों और सभी विशिष्ट अतिथियों को रूद्राक्ष का पौधा भेंट किया।
इस अवसर पर श्री विशाल जैन जी, अजय जैन, सुभाष जैन, विजय सापला, प्रमोद जैन जी आदि विशिष्ट अतिथियों ने सहभाग किया। इस अवसर पर भजनमाला पुस्तक का विमोचन किया।