
Pujya Swamiji Graces Bharat Mitra Pillar Inauguration Ceremony
सरसंघचालक स्वयं सेवक संघ माननीय डा मोहन भागवत जी, योगऋषि स्वामी रामदेव जी, परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी, पद्मश्री आचार्या डा सुकामा जी श्री रूद्रदेव जी ने वैदिक पथ के पथिक स्वर्गीय मित्रसेन आर्य जी की पावन स्मृति में निर्मित भारत मित्र स्तम्भ लोकार्पण समारोह में सहभाग कर वैदिक वाणी वैश्विक वाणी पर उद्बोधन दिया।
भारत मित्र स्तम्भ लोकार्पण समारोह को सम्बोधित करते हुये स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि समाज में दो तरह के लोग होते हैं एक वे जो अपने लिये जीते हैं और दूसरे वे तो समाज के लिये जीते हैं। जो अपने लिये जीते हैं उनका मरण होता है और जो समाज के लिये जीते हैं उनका स्मरण होता है। आज हम स्वर्गीय श्री मित्रसेन आर्य जी का स्मरण कर रहे हैं क्योंकि उन्होंने वेदों के मंत्रों को जिया है।
स्वामी जी ने कहा कि हमारे वेद अखंडता में विश्वास करते हैं और वे सत्य और ज्ञान के स्रोत हैं। वेदों में जीवन का ज्ञान व ब्रह्माण्ड का विज्ञान सामहित है। वर्तमान समय में हमें विचारों की वैक्सीन, वैदिक वैक्सीन की जरूरत है जो हमें वेदों से प्राप्त होती हैं। विचारों की वैक्सीन हमें वसुधैव कुटुम्बकम् का संदेश देती है, आ नो भद्राः क्रतवो यन्तु विश्वतः विश्व कल्याण का संदेश देती है, सर्वे भवन्तु सुखिनः का संदेश देती है। वास्तव में आज पूरे विश्व को अगर किसी चीज की जरूरत है तो वह वननेस की, एकता की और एकात्मकता की। आज भारत को महाभारत की नहीं बल्कि महान भारत की जरूरत है और महान भारत के विचारों के वैक्सीन की जरूरत है। वर्तमान समय में हमें मिलकर ऐसे स्तंभ खड़े करने की आवश्यकता है। भारत को भारत की दृष्टि से देखने की आवश्यकता है।
इस अवसर पर स्वामी जी ने कहा कि एक भारत-अखंड भारत के निर्माण हेतु आईये मिलकर चले, साथ-साथ चले और एक-दूसरे का हाथ थाम कर चले ताकि सब का सम्मान हो, सब समान हो क्योंकि यही है हमारी वैदिक संस्कृति।
स्वामी जी ने कहा कि आज जनसमुदाय को धर्म का भाव और धर्म की महिमा को सही अर्थों में समझने की आवश्यकता है। जो धर्म के भाव को नहीं समझते ऐसे सोच वाले लोग ही दूसरों को पीड़ा पहुंचाते हैं। आज पूरे समाज को मित्रता के झरने की आवश्यकता है।
स्वामी जी ने कहा कि पूज्यपाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी महाराज ने समाज के झंझावात को समाप्त करने के लिये सत्यार्थ प्रकाश के माध्यम से पूरे विश्व को एक अद्भुत विचार दिया। आज पूरे विश्व को इसकी आवश्यकता है। पूरे विश्व को वैदिक वाणी की आवश्यकता है। वैदिक वाणी, वैश्विक वाणी बने ताकि आपस की दीवारे समाप्त हो सभी दरारे हटे और एकता की संस्कृति की स्थापना हो।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने श्रीमती परमेश्वरी देवी संरक्षक परममित्र मानव निर्माण संस्थान और अध्यक्ष श्री कैप्टन रूद्रसेन सिंधु जी को हिमालय की हरित भेंट रूद्राक्ष का पौधा भेंट कर इस दिव्य आयोजन हेतु उनका अभिनन्दन किया।