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परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने गुरूग्राम में आयोजित दिव्य और भव्य श्री रामकथा में सहभाग कर संदेश दिया कि हमारा जीवन संस्कृति और संस्कारों को समर्पित हो। हमारे देश का सौभाग्य है कि हमारे राष्ट्र के तपस्वी महापुरूषों ने भारत की संस्कृति और संस्कारों को सम्भाल कर रखा है। उन्होंने कहा कि हमारे शास्त्र और भारतीय संस्कृति जिनका गुणगान करती है ऐसे हमारे प्रभु श्री राम हैं, भगवान श्री राम जी के चरण, शरण और आचरण हमारे जीवन का पाथेय बनंे।
श्री राम कथा भारतीय संस्कृति का एक महत्वपूर्ण अंग है जो हमें अपनी संस्कृति और संस्कारों के मूल्यों का बोध कराती है। श्री राम कथा का इतिहास लगभग 5000 वर्ष पुराना है। श्री राम जी की जीवन गाथा हमें धर्म, नैतिकता, वीरता, सहिष्णुता और भक्ति का संदेश देती है ताकि समाज में एक सकारात्मक परिवर्तन लाया जा सके।
स्वामी जी ने कहा कि हमारे बीच न कोई दीवार हो न कोई दरार हो। भगवान श्री राम जी की कथा का यही संदेश है कि दीवारे टूटे, दरारे भरे और प्रत्येक परिवार संस्कारी परिवार हो जाये यही श्री राम कथा का संदेश है।
स्वामी जी ने कहा कि हम अपने छोटे-छोटे विस्तार से विशालता की ओर बढ़े। अपने हृदय को विशाल बनाने के लिये अगर कोई चरित्र है तो वह है भगवान श्री राम का चरित्र। प्रभु श्री राम भारत की आत्मा है और हम सब के आराध्य हैं। यह हमारा सौभाग्य है कि हमारा जन्म भारत भूमि पर हुआ। भारत तपस्वी महापुरूषों की भूमि है। भारत केवल धरती का टूकड़ा नहीं बल्कि एक जीता जागता राष्ट्र है, भारत शक्ति, शान्ति और भक्ति की भूमि है।
श्री राम जी के आदर्शों में नैतिकता, धर्म, सदभाव, वीरता, सहिष्णुता, और सेवा का महत्व शामिल है। श्री राम जी ने संसार में व्याप्त समस्याओं का नैतिक मूल्यों के द्वारा समाधान करना सिखाया और समाज में व्याप्त समस्याओं को शांति से हल करने के लिए शांतिपूर्वक चर्चा को सदैव महत्व दिया।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने मानस कथाकार श्री मुरलीधर जी और सभी पूज्य संतों को रूद्राक्ष का पौधा भेंट किया।
 






