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H.H. Pujya Swami Chidanand Saraswatiji | | Pujya Swamiji Graces Sant Sammelan at Hariseva Ashram, Haripur
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Pujya Swamiji Graces Sant Sammelan at Hariseva Ashram, Haripur

Jun 14 2024

Pujya Swamiji Graces Sant Sammelan at Hariseva Ashram, Haripur

परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने म म स्वामी हरिचेतनानन्द जी के मार्गदर्शन में हरिसेवा आश्रम, हरिपुर में आयोजित विशाल संत सम्मेलन में सहभाग कर सभी पूज्य संतों का ध्यान ग्लोबल वार्मिग और क्लाइमेंट चेंज की ओर आकर्षित कराया।

स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि संतों ने ही समाज का मार्गदर्शन किया है। इस देश में जो संख्या बल है उसका प्रताप हम सभी देख रहे हैं परन्तु दूसरी ओर एक ऐसा संख्या का बल है जो प्रभु भाव से सभी को प्रभावित करता है। आज यहां पर जो दिखायी दे रहा है वह साधना का बल है। इस देश ने सदैव ही अनुभव किया है कि जीवन साधनों से महान नहीं बनता बल्कि साधना से महान बनता है। जीवन बड़े-बड़े भवनों का निर्माण करने से महान नहीं बनता बल्कि भावनाओं से महान बनाता है। जीवन बड़े-बड़े उच्चारण करने से नहीं बल्कि उच्च आचरण से महान बनाता है। भारत भूमि पूज्य संतों के उच्च आचरण से पूरे विश्व को प्रभावित और प्रभुभावित कर रही है।

स्वामी जी ने कहा कि भीतर और बाहर की गर्मी को शान्त करने का एक ही उपाय हैं पूज्य संतों की शरण, उनके चरण और उनका आचरण।
संत सम्मेलन में स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने सभी पूज्य संतों और अनुयायियों को पौधा रोपण व रक्त दान का संकल्प कराया।

योगगुरू स्वामी रामदेव जी ने गायत्री मंत्र की महिमा बताते हुये कहा कि गायत्री मंत्र का हमारे मस्तिष्क पर विलक्षण प्रभाव पड़ता है। उन्हें कहा कि हमारे घरों में तुलसी का पौधा होना चाहिये। तुलसी का पौधा प्रत्येक व्यक्ति को लगाना चाहिये। उन्होंने कहा कि अपने घरों में तुलसी, एलोवेरा, गिलोय, नीम, रूद्राक्ष आदि पांच से सात पौधे अवश्य लगाये।

स्वामी अवधेशान्नद गिरि जी ने कहा कि परमात्मा एक ही हैं और बाकी सभी उनके स्वरूप है। भारत ने पूरे विश्व को एकम् का विचार दिया है। सभी की एकता से ही हम भारत की रक्षा कर सकते हैं।

स्वामी कैलाशानन्द जी ने ज्ञान, वैराग्य और मुक्ति का बड़ी ही सहजता से वर्णन किया।

स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि भारत का इतिहास संतों, शहीदों, देशभक्तों और मातृभूमि की रक्षा के लिये अपने प्राणों का बलिदान करने वालों का इतिहास है। भारतीयों के लिये मातृभूमि की स्वतंत्रता कितना महत्त्व रखती है यह इतिहास के पन्ने बखूबी बयाँ करते हैं। मातृभूमि को आज़ाद कराने के लिये वीर जवानों ने बहुत रक्त बहाया, आज का दिन समाज सेवा के लिये रक्तदान करने का है।

स्वामी जी ने कहा कि ‘‘जीते जी रक्त दान जाते जाते नेत्र व अंग दान।’’दान वही है जो मानवीय सहायता हेतु बिना किसी लाभ के, उपहार के रूप में दिया जाता है।
अक्सर ही देखा गया है कि गंभीर बीमारियों से पीड़ितों को रक्त की कमी का सामना करना पड़ता है। ‘थैलेसीमिया’ के रोगियों को बहुत अधिक परेशानी का सामना करना पड़ताा है क्योंकि ऐसे रोगियों को जीवित रहने के लिये बार-बार रक्त बदलने की आवश्यकता होती है ऐसे में किसी को जीवन प्रदान करने के लिये निस्वार्थ भावना से दिया गया रक्त किसी की जिन्दगी बचा सकता है। जीवन रक्षक के रूप में रक्तदान बहुत ही अनिवार्य है।

स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने पूज्य संतों के साथ हिमालय की हरित भेंट रूद्राक्ष व तुलसी का पौधा स्वामी हरिचेतनानन्द जी को भेंट किया।

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