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H.H. Pujya Swami Chidanand Saraswatiji | | Pujya Swamiji Graces Shiksha Bhushan Teacher Award ceremony
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Pujya Swamiji Graces Shiksha Bhushan Teacher Award ceremony

Oct 02 2023

Pujya Swamiji Graces Shiksha Bhushan Teacher Award ceremony

परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने आज शैक्षिक फाउण्डेशन एवं अखिल भरतीय राष्ट्रीय शौक्षिक महासंघ द्वारा आयोजित शिक्षा भूषण-शिक्षक सम्मान समारोह में विशिष्ट अतिथि के रूप में सहभाग कर ’शिक्षक राष्ट्र का दीपक, गौरव और सम्मान’ विषय पर सम्बोधित किया।

स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी और माननीय सरकार्यवाह राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ श्री दत्तत्रेय होसबोले जी ने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी और भारत के दूसरे प्रधानमंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री जी की जयंती पर श्रद्धासुमन अर्पित किये।

स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि शिक्षा का भूषण मानव जीवन का सर्वश्रेष्ठ आभूषण है इसलिये धर्म, दर्शन और नैतिकता से युक्त शिक्षा ही भारतीय समाज का आधार रहा है। शिक्षा व समाज का शाश्वत संबंध है, जैसी शिक्षा होगी वैसे ही समाज का निर्माण होगा इसलिये हमारे पूर्वजों ने नालंदा और तक्षशिला जैसे अद्वितिय शिक्षण संस्थानों की स्थापना की थी, जो भारतीय शिक्षा व्यवस्था की समृद्ध परम्परा और विरासत को दर्शाती है।

स्वामी जी ने कहा कि भारत सदैव से ही शैक्षणिक स्तर पर समृद्ध रहा है। वर्तमान समय में भी हमें आने वाली पीढ़ियों को शिक्षा के साथ चरित्र निर्माण, संस्कार युक्त शिक्षा देनी होगी। शिक्षा में राष्ट्रभक्ति व राष्ट्रप्रेम का समन्वय हो, शिक्षा नैतिक गुणों से युक्त हो, व्यवहारिक और श्रेष्ठता से युक्त हो, पाठ्यक्रम मूल्य आधारित व कौशलयुक्त हो इस पर विशेष ध्यान देना होगा।

स्वामी जी ने कहा कि श्रेष्ठ चरित्र से ही श्रेष्ठ राष्ट्र का निर्माण किया जा सकता है और इस हेतु संस्कार युक्त पीढ़ियों का निर्माण करना जरूरी है और इसके लिये बच्चों को कार दे या न दे संस्कार अवश्य दीजिये। आजकल बाजार में कारों में नये-नये माड़ल है परन्तु परिवारों से संस्कार गायब होते जा रहे हैं इसलिये अखिल भारतीय राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ जैसे संगठनों की अत्यंत आवश्यकता है। पूज्य गुरूजी का सूत्रवाक्य है इदम राष्ट्राय इदम न मम। राष्ट्र प्रथम की भावना सभी में जागृत हो यह बहुत जरूरी है। शिक्षा का उद्देश्य सर्वांगीण विकास हो न कि रोजगार परक शिक्षा, या केवल धनार्जन तक ही सीमित न रह जाये। वास्तविक शिक्षा मनुष्य के विकास की अभिव्यक्ति है। संघ के विद्यालयों में ंहम देखते हैं कि शिक्षा के साथ संस्कारों का भी समावेश है। हम अपने बच्चों और विद्यार्थियों को मेडल के लिये प्रेरित करे परन्तु माॅडल बनने के लिये भी उत्साहित करें।

स्वामी जी ने कहा कि शिक्षक तो समाज की रीढ़ है, जो एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में ज्ञान, कौशल और बौद्धिकता को पहंुचाते हैं इसलिये शिक्षकों और गुरूजनों का सम्मान अत्यंत आवश्यक है।

मा सरकार्यवाह राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ श्री दत्तत्रेय होसबोले जी ने कहा कि भारत के पूज्य ऋषियों ने ‘सा विद्या या विमुक्तये’ का ज्ञान देकर शिक्षा की महत्ता पर बल दिया था। वास्तविक शिक्षा वही होती है जो मुक्ति का मार्ग प्रदान करे। मुक्ति का अर्थ संसार से पलायन नहीं बल्कि धर्म के साथ जीविका उपार्जन एवं धर्म युक्त कर्मों की महत्ता से है। मुक्ति से तात्पर्य विस्मृति के अंधकार से निकाल कर स्वयं की सहज अनुभूति से है। सामूहिक स्तर पर इसकी अभिव्यक्ति राष्ट्र एवं सम्पूर्ण मानवता के कल्याण के रूप में है।

उन्होंने कहा कि श्रेष्ठ शिक्षा वही जो विद्यार्थियों को विनम्रता और सहनशीलता प्रदान करे, जो व्यक्ति के जीवन को संतुलित कर सके और व्यक्ति के साथ समाज के हितों को भी साध सके एवं जीवन को संस्कारवान और अर्थपूर्ण बनाए। शिक्षा के माध्यम से समाज से नकारात्मकता दूर हो सकारात्मक वातावरण का निर्माण हो सके।

इस अवसर पर उपाध्यक्ष अखिल भारतीय राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ डा निर्मला यादव जी, महामंत्री अ भ रा शैक्षिक महासंघ, महेन्द्र कपूर जी, श्री शिवानन्द सिन्दनकेरा जी, विद्यापीठ शिक्षण मंच, नागपुर, डा कल्पना पांडे जी, शैक्षिक फाउण्डेशन, डा मनोज सिन्हा जी, विद्यापीठ शिक्षण मंच, नागपुर डा सतीश चाफले जी और अन्य विशिष्ट अतिथियों ने सहभाग किया। स्वामी जी ने रूद्राक्ष का पौधा भेंट कर सभी विशिष्ट अतिथियों का अभिनन्दन किया।

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