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H.H. Pujya Swami Chidanand Saraswatiji | | Pujya Swamiji Graces World Friendship Forgiveness Day Celebration
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Pujya Swamiji Graces World Friendship Forgiveness Day Celebration

Oct 01 2023

Pujya Swamiji Graces World Friendship Forgiveness Day Celebration

परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने विश्व मैत्री क्षमा दिवस समारोह में विशेष अतिथि के रूप में सहभाग किया।

स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने सभी मुनिवरों को रूद्राक्ष का दिव्य पौधा भेंट कर सम्पूर्ण मानवता के साथ क्षमा व करूणायुक्त व्यवहार करने का संदेश दिया।

स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि जीवन में क्षमा दूसरों के लिये नहीं चाहिये बल्कि इसलिये चाहिये कि हमें शान्ति मिल सके; हम अपने जीवन को शान्तिपूर्वक जी सके। यदि हम चाहते है कि हमें अवसाद न हो, बीमारी न हो और रात्रि को आप ठीक से नींद ले सके तो दूसरों को क्षमा करना सीखे। दूसरों को क्षमा करना अर्थात स्वयं के जीवन को बदलना बल्कि मुझे तो लगता है क्षमा और अहिंसा केवल शान्ति और मोक्ष की प्राप्ति के लिये ही नहीं है बल्कि यह सामाजिक आचरण का एक विशेष नियम भी है।

स्वामी जी ने कहा कि बिना क्रोध किये जीवन जीना तभी सम्भव है जब जीवन में प्रेम, करूणा, सत्य और अपनत्व की गंगा बहती हो। जीवन में आगे बढ़ना है तो क्षमा और शान्ति के रास्ते पर बढ़ना होगा।

स्वामी जी ने कहा कि महावीर स्वामी जी ने सम्पूर्ण जीवन अहिंसा पर जोर दिया और 5 महाव्रतों अहिंसा, सत्य, अस्तेय, अपरिग्रह, शुद्धता का संदेश दिया। साथ ही उन्होंने तीन रत्नों सम्यक दर्शन (सही विश्वास)। सम्यक ज्ञान (सही ज्ञान) और सम्यक चरित्र (सही आचरण) पर बल दिया जो वर्तमान समय की आवश्यकता भी है। उन्होंने अद्भुत विचार दिये कि संपूर्ण विश्व सजीव है, यहाँ तक कि पत्थरों, चट्टानों और जल में भी जीवन है और यही से सभी के प्रति अहिंसा का भाव, क्षमा का भाव केंद्र में रखा, जो वर्तमान समय में भी हमारे जीवन के केन्द्र में होना चाहिये।

स्वामी जी ने कहा कि महावीर स्वामी जी और महात्मा गांधी जी ने युगधर्म के अनुकूल जीवन-मूल्यों का निर्धारण किया जो हर युग के लिये प्रासंगिक है। हमारी भारतीय चिंतन परम्परा सत्य-अहिंसा के मूल्यों पर आधारित है बस उसी को लेकर हमें आगे बढ़ना है।

स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने केन्द्रीय जनजाजीय कार्य मंत्री भारत सरकार श्री अर्जुन मुंडा जी को रूद्राक्ष का पौधा भेंट कर उनका अभिनन्दन किया। सभी पूज्य संतों और मुनिवरों ने सारगर्भित उद्बोधन दिया।

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