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H.H. Pujya Swami Chidanand Saraswatiji | | Pujya Swamiji joins the Hon’ble Prime Minister & Leaders for Veer Bal Diwas Commemoration in Delhi
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Pujya Swamiji joins the Hon’ble Prime Minister & Leaders for Veer Bal Diwas Commemoration in Delhi

Dec 26 2022

Pujya Swamiji joins the Hon’ble Prime Minister & Leaders for Veer Bal Diwas Commemoration in Delhi

Pujya Swamiji joined the Hon’ble Prime Minister, Shri Narendra Modiji and  faith and civic leaders from across India for the Veer Bal Diwas commemoration in Delhi of the Lasani martyrdom of Baba Zorawar Singhji and Baba Fatah Singhji today. Such a beautiful and memorable event!


ऋषिकेश, 26 दिसम्बर। मेजर ध्यानचंद राष्ट्रीय स्टेडियम, दिल्ली में आयोजित बाबा जोरावर सिंह जी और बाबा फतेहसिंह जी की लासानी शहादत को समर्पित वीर बाल दिवस के अवसर पर कार्यक्रम के मुख्य अतिथि भारत के माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने सहभाग कर देश को सम्बोधित किया।

इस अवसर पर परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी, स्वामी सुशील जी, संस्कृति एवं संसदीय कार्य मंत्रालय केन्द्रीय मंत्री श्री अर्जुनराम मेघवाल जी, संस्कृति एवं विदेश मंत्रालय केन्द्रीय राज्यमंत्री श्रीमती मीनाक्षी लेखी जी की गरिमामयी उपस्थिति रही।

माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने कहा कि आज देश पहला वीर बाल दिवस मना रहा है जिस दिन को, जिस बलिदान को हम पीढ़ियों से याद करते आये हैं उसे आज एक राष्ट्र के रूप में एकजुट होकर नमन करने के लिये एक शुरूआत हुयी है। यह दिवस और पूरा सप्ताह भावों से भरा है। इस दिवस के साथ आकाश जैसी अनंत प्रेरणायें भी जुड़ी है। वीर बाल दिवस हमें याद दिलायेगा की शौर्य की पराकाष्ठा के समय कम आयु मायने नहीं रखती। यह दिवस हमें याद दिलायेगा की देश के स्वाभिमान के लिये दस गुरूओं और सिख परम्परा का योगदान क्या है। यह दिवस हमें भारत की पहचान की याद दिलाता है।

स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि भारत का सौभाग्य है कि भारत के पास एक ऐसे प्रधानमंत्री है जो आज स्वयं मंच पर नहीं बैठे परन्तु बच्चों को बैठाया, यह वास्तव में अद्भुत दृश्य था। वे एक ऐसे प्रधानमंत्री है जिनके पास विजऩ है, विसडम है; मिशन है और फिर एक्शन भी है। वे विकास के साथ विरासत की भी बात ध्यान में रखते है।

आज जो हुआ वह ऐतिहासिक है, जो 300 वर्षों में नहीं हुआ वह आज हुआ। हम अक्सर बड़ों को तो सम्मानित करते है परन्तु बच्चों की शहादत पर ऐसा सम्मान देना अनुकरणीय है।

स्वामी जी ने कहा सिख कौम बहुत बहादुर कौम है, जो करती है दिल से करती है और देश के लिये जीती हैं तथा देश के लिये ही मरती है। सिखों की बात ही निराली है, कोरोना हो या सूनामी लंगर कभी बंद नहीं हुआ सदैव चलता रहा। पंगत और संगत की जो शक्ति है वह सचमुच अपने आप में एक उदाहरण है। दो योद्धा बालक एक मशाल के रूप में सामने आये हैं, उनकी यह शहादत पूरे देश के लिये प्राणवायु का काम करेंगी।

भारत के प्रधान मंत्री माननीय श्री नरेन्द्र मोदी जी ने घोषणा की है कि 26 दिसंबर को अंतिम सिख गुरु, गुरु गोबिंद सिंह जी के चार पुत्रों ‘साहिबजादों’ के साहस को श्रद्धांजलि देने के लिये ‘वीर बाल दिवस’ के रूप में चिह्नित किया गया है। इस दिन को इसलिये चुना गया है क्योंकि इस दिन को साहिबजादा जोरावर सिंह जी और फतेह सिंह जी के शहादत दिवस के रूप में मनाया जाता था, जो मुगल सेना द्वारा सरहिंद (पंजाब) में छह और नौ साल की उम्र में मारे गए थे। साहिबजादे जोरावर सिंह जी और साहिबजादा फतेह सिंह जी सिख धर्म के सबसे सम्मानित शहीदों में से हैं।

मुगल सैनिकों ने 1704 के आदेश पर आनंदपुर साहिब को घेर लिया गया था और गुरु गोबिंद सिंह जी के दो पुत्रों को पकड़ लिया गया था तथा उन्हें धर्मपरिवर्तन न करने पर मारने की पेशकश की गई थी।

उन दोनों ने इनकार कर दिया और इसलिये उन्हें मौत की सजा दी गई और उन्हें जिंदा ईंटों से दीवार में चुनवा दिया गया। इन दोनों शहीदों ने धर्म के महान सिद्धांतों से विचलित होने के बजाय मृत्यु को प्राथमिकता दी।

पूरे परिवार ने राष्ट्र की सेवा, समावेशी और सामंजस्यपूर्ण समाज की स्थापना हेतु अद्भुत योगदान दिया। अपने राष्ट्र की अस्मिता, गरिमा और अखंडता को बचाने के लिये अपना बलिदान कर दिया, ऐसे बलिदानी परिवार को कोटि-कोटि नमन और श्रद्धांजलि।

स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि माता गूजरी जी और गुरूगोबिंद सिंह जी के दोनों छोटे बलिदानी पुत्रों तथा गुरु गोबिंद सिंह जी की कुर्बानियों का यह सप्ताह केवल सिख इतिहास में ही नहीं बल्कि भारत के इतिहास के लिये भी गौरव का दिन है। भारत की मिट्टी ने ऐसे बलिदानियों को जन्म दिया जिन्होंने अपनी मातृभूमि के लिये हँसते-हँसते अपने परिवार को कुर्बान कर गये। गुरु गोबिंद सिंह जी की कुर्बानियों को यह राष्ट्र हमेशा गर्व के साथ याद करेगा। इतिहास के पन्नों पर कुर्बानियों की स्वर्णीम इबारत लिखी है और हमेशा लिखी रहेगी।

सन् 1704 में आनंदपुर पर हमले के पश्चात सरसा नदी पर जो घटा उसने एक गौरवशाली इतिहास को लिख दिया। उस समय पूरा परिवार बिछुड़ गया। सरसा नदी पर बिछुड़े माता गुजरी जी, 7 वर्ष के शहीद जोरावर सिंह जी एवं 5 वर्ष के शहीद फतह सिंह जी को गिरफ्तार कर लिया गया।

गुरूगोबिंद सिंह जी ऐसे साहसी व्यक्तित्व के धनी थे कि उनकी ये पंंिक्तया ‘‘सवा लाख से एक लड़ाऊं, चिड़ियन ते मैं बाज तुड़ाऊं, तबै गुरु गोबिंद सिंह नाम कहाऊं’’ आज भी साहस से भर देती हैं। उन्होंने जीवन के बड़े ही प्यारे मंत्र दिये। ‘नाम जपो, कीरत करो और वंड चखो’ वास्तव में यही जीवन जीने व सेवा करने का माध्यम और सच्चा धर्म भी है। शहीद शहजादों को भावभीनी श्रद्धाजंलि अर्पित करते हुये आज की परमार्थ गंगा आरती शहजादों को समर्पित की गयी।

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