
Pujya Swamiji Meets with UP Governor Smt. Anandi Ben Patelji and Yoga Guru Swami Ramdevji
परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी और योगगुरू स्वामी रामदेव जी की उत्तरप्रदेश की राज्यपाल श्रीमती आनंदी बेन पटेल जी से भेंटवार्ता हुई।
तीनों दिव्य विभूतियों ने भारतीय संस्कृति, योग और क्लाइमेंट चेंज के विषयों पर चर्चा की।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि भारतीय संस्कृति समृद्ध संस्कृति है, इसकी समृद्धि को बनाये रखने के लिये परंपरागत अस्तित्व और परम्परागत जीवन शैली को को बनाये रखना अत्यंत आवश्यक है।
स्वामी जी ने कहा कि संस्कृति किसी भी देश, जाति और समुदाय की आत्मा होती है। संस्कृति से ही देश या समुदाय के उन समस्त संस्कारों का बोध होता है और उसी से जीवन आदर्शों, जीवन मूल्यों, आदि का निर्धारण भी होता है। स्वामी जी ने कहा कि हमें अपने पारंपरिक मूल्यों को जीवंत व जागृत बनाये रखने के लिये अपने मूल व मूल्यों से जुड़ने के लिये प्रेरित करना होगा।
भारतीय संस्कृति के दिव्य मंत्र ऊँ सर्वे भवन्तु सुखिनः के माध्यम से सम्पूर्ण विश्व के कल्याण की प्रार्थना की गयी है ताकि सभी सुखी रहें, सभी रोगमुक्त रहें, सभी का जीवन मंगलमय बनें और कोई भी दुःख का भागी न बने। भारतीय संस्कृति सदैव से ही विश्व कल्याण, और शान्ति का उद्घोष करती है।
देखा जाये तो हमारा समाज सहयोग एवं संघर्ष द्वारा संचालित एक संस्था है परन्तु जब संघर्ष बढ़ जाता है तो दमन की और सहयोग बढ़ता है तो शान्ति की शुरूआत होती है इसलिये मनुष्य में अहिंसा के गुण को समाविष्ट करना जरूरी है ताकि समाज के अस्तित्व को सुनिश्चित किया जा सके
भारतीय संस्कृति में वसुधैव कुटुम्बकम् की भावना और ‘सर्वे भवन्तु सुखिन’ जैसे मूल्यों को केंद्र में रखकर प्राणिमात्र के प्रति करुणा, आत्मीयता, प्रेम और शान्ति में अभिवृद्धि की जा सकती है। वर्तमान समय में न केवल भारत बल्कि वैश्विक स्तर पर यह संदेश प्रसारित करने की जरूरत है कि हिंसा मानवता के लिए अभिशाप और अहिंसा के माध्यम से ही शान्ति की संस्कृति को स्थापित किया जा सकता है।
हिंसा, किसी भी समस्या का स्थायी समाधान नहीं दे सकती, दीर्घकाल में हिंसा के नकारात्मक प्रभाव पूरे समाज को प्रभावित करते हैं। अहिंसा भारतीय परंपरा में एक नियम या किसी पुस्तक में लिखी केवल एक इबारत नहीं है बल्कि एक जीवन पद्धति है जिसका उल्लेख सदियों पहले महर्षि पतंजलि ने ‘पतंजलि योग सूत्र’ में किया है। उन्होंने अहिंसा को व्यक्तिगत नैतिकता के प्रथम सिद्धांत के रूप में उल्लेखित किया है।
महात्मा गांधी जी के अनुसार अहिंसा नैतिक जीवन जीने का मूलभूत सिद्धान्त है। यह केवल एक आदर्श नहीं है बल्कि यह हमारा एक प्राकृतिक नियम है। भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन का स्वरूप भी काफी हद तक अहिंसक था। भारत में ‘विधि का शासन’ और ‘विधि के समक्ष समता’ जैसे मूल्यों के आधार पर आज भी अहिंसक समाज पोषित हो रहा है।
अगर हम देखें तो, भारत 18 वीं व 19 वीं सदी तक प्रकृति और मानव जीवन के समन्वित विकास, सहअस्तित्व एवं आध्यात्मिक मूल्यों को साथ लेकर आगे बढ़ा लेकिन 20 वीं व वर्तमान 21 वीं सदी में मानव जिस भौतिकवादी संस्कृति को लेकर आगे बढ़ रहा है उसमें मानवता और प्रकृति का कल्याण निहित नहीं है। हमें एक ऐसी संस्कृति विकसित करनी होगी जो परम्परागत होने के साथ ही उसमें धर्म, आध्यात्मिकता, मानवतावादी, सनातन संस्कृति और वैज्ञानिकता की सभी धाराएँ समाहित हो। एक ऐसा मार्ग खोजना होगा जिसमें धर्म, अध्यात्म एवं भौतिकता’ का उत्कृष्ट समन्वय हो। इसी समन्वय से मानव और प्रकृति के अस्तित्व को बचाया जा सकता है।
वर्तमान समय में हम प्रकृति को अपनी आवश्यकताओं के अनुसार ढालने की पूरी कोशिश कर रहें हैं जिसके परिणाम कई बार हमारे सामने ऐसे आते हैं जिन पर हमारा कोई नियंत्रण नहीं होता। परन्तु धार्मिक एवं आध्यात्मिक पथ पर चलते हुये भौतिक प्रकृति को जानना, समझना, व्यवहार करना और फिर विकास के पथ पर आगे बढ़ना एक सहिष्णु मार्ग है जिस पर अमल कर सतत, सुरक्षित और सार्वभौमिक मानवतावादी विकास सम्भव है।