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H.H. Pujya Swami Chidanand Saraswatiji | | Forest Conservation Week Message
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Forest Conservation Week Message

Feb 03 2023

Forest Conservation Week Message

ऋषिकेश, 3 फरवरी। परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने वन संरक्षण सप्ताह के अवसर पर पौधा रोपण का संदेश देते हुये कहा कि वन है तो जीवन है।

स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि उत्तराखंड, वन और जल संपदा से युक्त प्रदेश है। वनों को सबसे अधिक खतरा वनाग्नि से होता है। वनाग्नि, मानव, प्रकृति तथा वन्य जीव जंतुओं सभी के लिये खतरा है। जंगलों की आग के कारण न केवल जीवों का बल्कि मानव का जीवन भी प्रभावित होता है।

अप्रैल-मई में अक्सर देश के विभिन्न हिस्सों के जंगल में आग लगती है लेकिन उत्तराखंड में वनाग्नि सामान्य से अधिक रही है, यह कई प्राकृतिक और मानवीय गतिविधियों के कारणों से भी हो सकती है। वर्तमान समय में वनाग्नि की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं जिसके लिए जलवायु परिवर्तन भी महत्वपूर्ण कारक है।

भारत में, वनाग्नि सबसे अधिक मार्च और अप्रैल में होती है, जब बड़़ी मात्रा में सूखी लकड़ी, लॉग, मृत पत्ते, स्टंप, सूखी घास और खरपतवार होते हैं। प्राकृतिक कारण जैसे अत्यधिक गर्मी और सूखापन तथा पेड़ों की शाखायें जब एक दूसरे के साथ रगड़ती है जिससे घर्षण उत्पन्न होता है इससे भी आग की घटनायें हो रही है। भारत में अधिकतम आग के मामले मानव निर्मित भी होते हैं। एक सिगरेट की बट की एक छोटी सी चिंगारी, या एक माचिस की तीली भी आग का भयंकर रूप ले सकती है इसलिये वनों के संरक्षण के प्रति जन सामान्य तथा स्थानीय समुदायों को जागरूक होना होगा।

वनों में लगी आग के कारण वनों की जैव विविधता और पूरा पारिस्थितिकी तंत्र प्रभावित होता है। जंगल में पेड़ पौधों के साथ ही छोटी-छोटी घास, झाड़ियाँ व वनस्पती, जड़ी-बूटी भी नष्ट हो जाती हैं। इसकी वजह से भू-क्षरण, भू-स्खलन और त्वरित बाढ़ की घटनाओं में वृद्धि हो रही है और लकड़ियों के जलने से उठने वाला धुआँ और विभिन्न प्रकार की जहरीली गैसें मानव और सभी प्राणियों के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव डालती हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार जगल की आग से निकलने वाली गैसें, जिनका प्रभाव वायुमंडल में 3 साल तक रहता है तथा इसके कारण कैंसर जैसी घातक बीमारियाँ भी हो सकती हैं इसलिये हम सभी को वनों की सुरक्षा हेतु योगदान प्रदान करना चाहिये।

स्वामी जी ने कहा कि बढ़ती जनसंख्या के कारण वनों और प्राकृतिक संसाधनों पर ही सर्वाधिक दबाव पड़ा इसलिये वनों के संरक्षण और सुरक्षा की जिम्मेदारी हम सभी को उठानी होगी क्योंकि हम सभी के सहयोग, भागीदारी और जागरूकता के बिना जंगलों की सुरक्षा संभव नहीं है।

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