
International Conscience Day
परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने आज अन्तर्राष्ट्रीय अन्तरात्मा दिवस के अवसर पर अपनी धरा के साथ शांतिपूर्ण और सौहार्दपूर्ण संबंधों को स्थापित करने का संदेश दिया।
प्रेम और विवेक के साथ शांति की संस्कृति को बढ़ावा देने के साथ ही मानवाधिकारों की रक्षा के लिये अन्तर्राष्ट्रीय अन्तरात्मा दिवस मनाया जाता है। भविष्य की पीढ़ियों को पर्यावरण प्रदूषण, ग्लोबल वार्मिग और क्लाइमेंट चेंज के संकट से बचाने के लिए शांति की संस्कृति को स्थापित करने के लिये मिलकर कार्य करना होगा। साथ ही अपने मूल और मूल्य से जुड़ना होगा और अपने दृष्टिकोण व व्यवहार में परिवर्तन लाना होगा।
स्वामी जी ने कहा कि भारतीय संस्कृति सहिष्णुता और एकजुटता की संस्कृति को बढ़ावा देने की संस्कृति है, जो सभी के विकास, समृद्धि के साथ समाज की विकास प्रक्रिया में पूर्ण सहयोग प्रदान करती है। भारतीय संस्कृति मानवाधिकारों की रक्षा और मौलिक स्वतंत्रता के सम्मान के साथ ही कल्याणकारी, शांतिपूर्ण और मैत्रीपूर्ण संबंधों को बढ़ावा देने की संस्कृति है।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि हम जानते है कि दुनिया बदल रही है और एक नई दुनिया नई सोच के साथ सामने आ रही है ऐसे में हमारे दृढ़ विश्वास की शक्ति ही हमारे विचारों को सुदृढ़ करेगी। स्वामी जी ने कहा कि भारत की संस्कृति, वसुधैव कुटुम्बकम् के सूत्र और सर्वे भवन्तु सुखिनः की अद्वितीय प्रार्थना ने दुनिया में शान्ति स्थापित करने में अद्भुत योगदान प्रदान किया है। भारत के माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने ‘सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास, सबका प्रयास’ के आह्वान से सभी को प्रेरित किया हैं और यही संस्कृति सौहार्दता की संस्कृति है।
स्वामी जी ने कहा कि आज का दिन हमें पृथ्वी को साथ शांतिपूर्ण और सौहार्दपूर्ण संबंधों को स्थापित करने का संदेश देता है। भारत एक विशाल विविधता वाला देश है और विश्व की लगभग 10 प्रतिशत से अधिक प्रजातियों का घर होने के साथ ही एक समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का केन्द्र भी है। प्रत्येक प्रजाति, प्राणी और पारिस्थितिकी तंत्र पृथ्वी पर जीवन की समृद्धि और सुंदरता को बढ़ाते हैं इसलिये पृथ्वी का संरक्षण अर्थात सम्पूर्ण जीवों का संरक्षण।
आज का दिन प्रेम और विवेक के साथ शांति की संस्कृति का निर्माण करने के लिए सभी को जागरूक करने का अवसर प्रदान करता है। इस अवसर पर स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने रूद्राक्ष के पौधें का रोपण कर अपनी धरा के साथ सौहार्दपूर्ण संबंधों को विकसित करने का संदेश दिया।